
@बिट्टू शर्मा
तोपचंद, जांजगीर-चांपा। जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण के शबरी मंदिर से बेर लेकर अयोध्या जाने यात्रा निकली। यह यात्रा सुबह 11 बजे शबरी आश्रम में रथ में सवार होकर सेमरा, जांजगीर होते हुए कोरबा पहुंचेगी। यहां सीता गुफा का दर्शन कर दीपका, कटघोरा, अंबिकापुर, बनारस होते हुए अयोध्या पहुंचेगी हजारों श्रद्धालु उनके नेतृत्व में निकली यह यात्रा शबरी धाम से अयोध्या प्रस्थान करेंगी।
22 जनवरी को अयोध्या में नवनिर्मित भव्य राममंदिर में प्रभु श्रीरामलला विराजमान होंगे वहां प्रभु श्रीराम के साथ उनकी भक्त माता शबरी का भी मंदिर बनाया जा रहा है। ये प्रभु श्रीराम और माता शबरी का एक साथ दुनिया का दूसरा मंदिर होगा। पहला मंदिर श्रीराम के ननिहाल छत्तीसगढ़ के टेंपल सिटी शिवरीनारायण में है। रामलला के प्राण प्रतिष्ठा के इस उत्सव के मौके पर जानना जरूरी है कि शबरी और नारायण की वजह से ही इस धाम का नाम शिवरीनारायण पड़ा।
शिवरीनारायण में शबरी और राम की स्मृति चिरस्थायी है। किवदंती के अनुसार यहां प्रभु श्री राम ने माता शबरी के जूठे बेर खाकर अपने प्रेम से कई संदेश दिए शिवरीनारायण मंदिर परिसर में आज भी एक पेड़ है, जिसकी पत्तियां दोने के रूप में है। ऐसा माना जाता है कि शबरी ने उसी पेड़ की पत्ती पर रखकर बेर श्री राम जी को खिलाया था,उसके बाद भगवान के प्रभाव से इस पेड़ की पत्तियां स्वयं दोना के रूप में बदल गईं।
वेद ज्ञाता भी मानते हैं कि छत्तीसगढ़ के कण-कण में, रज-रज में राम है। यहां की लोक आस्था के केंद्र में भगवान राम हैं। भगवान राम छत्तीसगढ़ में भांचा के रुप में घर-घर आराध्य हैं। वनवास के दौरान वे छत्तीसगढ़ के जिन-जिन जगहों से गुजरे,वे पूजे जाते हैं और सबका अपना धार्मिक,पुरात्विक महत्व है। महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के त्रिधारा संगम तट पर बसा है शिवरीनारायण। शबरी और नारायण के मातृप्रेम से भीगी इस धरती पर प्रदेश का इकलौता शबरी मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार रामायण के समय से यहां शबरी आश्रम है।
भगवान श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान किया था। शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए शबरी-नारायण नगर बसा। हिंदू वेद पुराणों के मुताबिक भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को शिवरीनारायण से ही ओडिशा के पुरी ले जाया गया था। ये भी मान्यता है कि हर साल माघी पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ यहां नारायण रुप में विराजते और दर्शन देते हैं। याज्ञवलक्य संहिता और रामावतार चरित्र में उल्लेख है कि भगवान श्रीराम का नारायणी रूप यहां गुप्त रूप से विराजमान हैं। इसीलिए शिवरीनारायण को गुप्त तीर्थधाम भी कहा जाता है।
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शिवरीनारायण का वैभव
हर युग में शिवरीनारायण का अस्तित्व रहा है। सतयुग में बैकुंठपुर, त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग में विष्णुपुरी तथा नारायणपुर के नाम से विख्यात शिवरीनारायण मतंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और शबरी की साधना स्थली भी रहा है। छत्तीसगढ़ की जगन्नाथपुरी के नाम से विख्यात शिवरीनारायण का जिक्र स्कंध पुराण में भी मिलता है। जिसे श्री पुरूषोत्तम और श्री नारायण क्षेत्र कहा गया है। शिवरीनारायण को तीर्थनगरी प्रयाग जैसी मान्यता है।
शबरी ने राम को खिलाए जूठे बेर
शैव, वैष्णव, जैन और बौद्ध धर्माे की मिली जुली संस्कृति का साक्षी शिवरीनारायण प्राचीन काल से ही दक्षिण कौशल के नाम से विख्यात रहा है। धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत समृध्द शिवरीनारायण रामायणकालीन घटनाओं से भी जुडा हुआ है। इसी वजह से भी इसे नारायण क्षेत्र या पुरूषोत्तम क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में भगवान श्री राम को यहीं पर शबरी ने अपने जूठे बेर खिलाये थे। जिसके बाद शबरी और नारायण के नाम पर यह शबरीनारायण हो गया और कालांतर में ये शिवरी नारायण हो गया। यहां पर शबरी के नाम से ईटों से बना प्राचीन मंदिर भी है।

कौन थीं माता शबरी?
माता शबरी वस्तुतः भील राजा शबर की कन्या थीं। कथा है कि भील राजा ने शबरी के विवाह के लिए भव्य आयोजन किया। विवाह से पहले सैकड़ों बकरे-भैंसे बलि के लिए लाये गए थे। उन्हें देखकर शबरी विचलित हो गईं कि उनके हिस्से ये कैसी खुशी जिसके लिए इन बेजुबान प्राणियों को बलि पर चढ़ना पड़ रहा है। उनका हृदय पिघल गया और मन ने दृढ़निश्चय कर लिया कि ऐसा विवाह उन्हें नहीं चाहिए। वे घर से भाग निकलीं।
कैसे मिला मतंग ऋषि के पास आश्रय
माता शबरी को लगता था कि हीन जाति से ताल्लुक रखने के कारण ऋषियों के आश्रम में उन्हें स्थान नहीं मिलेगा। इसलिए उन्होंने ऐसी उम्मीद रखी ही नहीं। वे बस नियम से श्रद्धाभाव और पूर्ण निष्ठा से ऋषि के आश्रम से निकल कर नदी पहुंचने के मार्ग को सुबह-सवेरे निष्कंटक करने, बुहारने में दिन बिताने लगीं। वे यह काम छुप कर करती थीं। बावजूद इसके त्रिकालदर्शी ऋषि मतंग सब जान गए। निस्वार्थ सेवा भावना से प्रभावित होकर सामाजिक विरोध को दरकिनार कर उन्होंने शबरी को न केवल अपने आश्रम में जगह दी, उनका ज्ञानवर्धन भी किया। यहीं नहीं अपने अंतिम समय में मतंग ऋषि ने शबरी से कहा कि वे श्री राम के आगमन का इंतज़ार करें, वे स्वयं शबरी को दर्शन देने आएंगे, इसके बाद तुम्हें मोक्ष मिलेगा। शबरी का सारा जीवन इसके बाद आश्रम को सुव्यवस्थित रखने और श्री राम की प्रतीक्षा करने में बीता।
आखिर शबरी से मिलने आए राम
कहते हैं कि सीता माता की खोज में भटकते श्री राम, बंधु लक्ष्मण के साथ शबरी माता के इसी आश्रम में आए थे। यहीं माता शबरी ने प्रेम के वशीभूत, वात्सल्य से भरकर बेर चखे, और उनकी मिठास जांचकर राम की ओर बढ़ा दिए। राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए। जूठे बेर खिलाने का आशय यह था कि भगवान को कहीं खट्टे बेर न मिल जाए इसलिए शबरी पहले बेर को चखती फिर मीठे वाले का भगवान को खिलाती। उन्हीं के आशीर्वाद से शबरी को मोक्ष भी प्राप्त हुआ।
कैसा है शिवरीनारायण में माँ शबरी का आश्रम
माता शबरी का आश्रम शिवरीनारायण के विशाल मंदिर परिसर में स्थित है। पुजारी बताते हैं कि कथानुसार शबरी का प्राचीन मंदिर छैमासी रात में बना था। सुबह हो जाने पर एक तरफ का हिस्सा अधूरा रह गया।शेष मंदिर में अद्वितीय नक्काशी की गई है। बाद में बिजली गिरने से भी इसका कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया इसलिए अब यहां पूजा तो नहीं होती लेकिन उसकी बकायदा साज संभाल होती है।
सरकार ने भक्तों के आकर्षण को देखते हुए और श्री राम से जुड़ी स्मृतियों को सहेजने के लिए मंदिर परिसर के बाहर रामायण इंटरप्रिटेशन सेंटर का निर्माण कराया है। इंटरप्रिटेशन सेंटर के बाद स्थित दो वृक्षों के बीच में भगवान राम को जूठे बेर खिलाती हुई माता शबरी की प्रतिमा स्थापित की गयी है जो अति सुंदर है और भक्तों के आकर्षण का केंद्र भी।
भक्त शबरी के ऐतिहासिक मंदिर के दर्शन के लिए भी ज़रूर जाते हैं। सामने खड़े मनोकामना वृक्ष के समक्ष नारियल चढ़ाते हैं। पूरे मंदिर परिसर में श्लोकों की गूंज भक्तों का मन प्रसन्न कर देती है।शबरी के निश्छल प्रेम की अविरल भारा मानो आज भी यहां बहती है।

टेंपल सिटी में भगवान
इसे अब बडा मंदिर और नरनारायण मंदिर भी कहा जाता है। प्राचीन स्थापत्य कला एवं मूर्तिकला के बेजोड़ नमूने वाले इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण राजा शबर ने करवाया था। शिवरीनारायण मंदिर में वैष्णव समुदाय द्वारा वैष्णव शैली की अदभुत कलाकृतियां देखने को मिलती हैं। उत्तर भारतीय आर्य शिखर शैली में बने बड़े मंदिर का प्रवेश द्वार सामान्य कलचुरि प्रकार के मंदिरों से भिन्न और नागवंशी मंदिरों के प्रवेश द्वार की तरह है। बड़े नर नारायण मंदिर की परिधि 136 फीट तथा ऊंचाई 72 फीट है जिसके ऊपर 10 फीट का स्वर्णिम कलश है। मंदिर के चारों ओर पत्थरों पर नक्काशी कर लता वल्लरियों व पुष्पों से सजाया गया है।
एक अन्य मान्यता के मुताबिक यहां 11 शताब्दी में हैह्य वंश के राजाओं ने लक्ष्मी नारायण मंदिर बनवाया। नर-नारायण मंदिर के ठीक सामने 12 वीं शताब्दी का केशवनारायण मंदिर है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की अत्यंत प्राचीन भव्य प्रतिमा है इस मूर्ति के चारों और भगवान विष्णु के 10 अवतारों का सुंदर अंकन है। इस मंदिर में दो स्तंभ हैं एक स्तंभ में सुंदर चित्रकारी की गई है जबकि दूसरे स्तंभ को खाली छोड़ दिया गया है। प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान नारायण के पैर के पास जिस स्त्री का चित्रांकन किया गया है वहीं सबरी है।
पंचरथ तल विन्यास पर निर्मित यह भूमिज शैली का ईटो से निर्मित सुन्दर मंदिर है। जिसका निर्माण काल 9 वीं सदी ईस्वी माना जाता है। शिवरीनारायण में 9 वीं शताब्दी से लेकर 12 वीं शताब्दी तक की प्राचीन मूर्तियां स्थापित है। शिवरीनारायण में बड़े मंदिर के अलावा मां अन्नपूर्णा, चंद्रचूड़ और महेश्वर महादेव, केशवनारायण, श्रीराम लक्ष्मण जानकी, जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, राधाकृष्ण, काली और मां गायत्री का भव्य और आकर्षक मंदिर है। जहां के दर्शन करने लाखों लोग हर साल पहुंचते हैं।
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