धर्म : भारत में प्राचीन काल से ही कान छिदवाने की परंपरा रही है. प्राचीन समय में लड़के और लड़कियां दोनों के ही कान छिदवाये जाते थे. धीरे -धीरे लड़कों में कान छिदवाने की परंपरा कम होती गई, लेकिन आज भी लड़कियों का श्रृंगार कानों के झुमकों के बिना अधूरा माना जाता है. कानों में पहने जाने वाली ईयर रिंग महिला की सुंदरता में चार चांद लगा देती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कान छिदवाने की परंपरा के पीछे बहुत से धार्मिक और वैज्ञानिक कारण बताए जाते हैं, आइए जानते हैं.
कान छिदवाने के धार्मिक कारण?
हिंदू धर्म में इंसान के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार किए जाते हैं. इन्ही 16 संस्कारों में से एक कर्णवेध संस्कार भी है. कर्णवेध संस्कार लड़के और लड़कियां दोनों के लिए ही होता था. प्राचीन समय में शुभ मुहूर्त निकालकर बच्चों के कान में मंत्र बोलकर कर्णवेध संस्कार किया जाता था. बच्चों के कान में मंत्र बोलने के बाद लड़कों का पहले दायां कान छेदा जाता था और उसके बाद फिर बायां कान छेदा जाता था. लड़कियों के लिए इसका विपरीत करते थे. यानी लड़कियों का पहले बायां कान और फिर दायां छेदा जाता था. तब कान में छेद करते समय भी सोने के आभूषण पहनाएं जाते थे. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार,कान छिदवाने से राहु और केतु ग्रह से संबंधित बुरे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से संतान स्वस्थ और निरोगी रहती है.
कान छिदवाने के वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, जिस जगह पर कान में छेद करवाया जाता है, उस जगह पर दो बहुत महत्वपूर्ण एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स होते हैं. पहला पॉइंट होता है मास्टर सेंसोरियल और दूसरा प्वाइंट मास्टर सेरेब्रल होता है, जो कि सुनने की क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं. इस बारे में एक्यूप्रेशर में कहा गया है कि जब कान छिदवाए जाते हैं, तो इसका दबाव ओसीडी पर पड़ता है, जिसके कारण घबराहट कम होती है और कई तरह की मानसिक बीमारियां भी दूर होती हैं.
माना जाता है कि कान छिदवाने से हमारी आंखों का स्वास्थ्य भी सही रहता है, क्योंकि कान के निचले हिस्से में एक पॉइंट होता है, जब उस पर दबाव पड़ता है तो इस दबाव के प्रभाव से आंखों की रौशनी तेज होती है.
आयुर्वेद के अनुसार, कान छिदवाने से कई प्रकार के रोग होने का खतरा कम हो जाता है. आयुर्वेद में माना जाता है कि, कान के निचले हिस्से में एक प्वाइंट होता है, और जब इस प्वाइंट पर छेद किया जाता है तो यह दिमाग पर प्रभाव डालता है, जिससे दिमाग के कई हिस्से सक्रिय हो जाते हैं. इसलिए ही छोटी उम्र में ही कान छिदवाने की परंपरा थी.
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