तोपचंद, धर्म-कर्म: Diwali 2023: पांच दिवसीय दीपावली के साथ भी तमाम पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. उन्हीं पांच पौराणिक कथाओं के आधार पर हम इस महापर्व को सेलिब्रेट करते हैं.
धनतेरस की पौराणिक कथा
एक बार माँ लक्ष्मी श्रीहरि संग पृथ्वी पर भ्रमण कर रही थीं. श्रीहरि ने, आप मेरे आने तक यहां रुकें, लेकिन लक्ष्मीजी चलती रहीं, रास्ते में सरसों के लहलहाते पीले फूल देखकर लक्ष्मीजी ने फूलों से श्रृंगार किया, आगे गन्ने के रस का आनंद लिया. तभी श्रीहरि आ गये. उन्होंने कहा, आपने किसान के खेत में चोरी है. आपको 12 साल तक किसान के घर सेवा करें. एक दिन लक्ष्मीजी ने किसान की पत्नी से लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा करने को कहा. ऐसा करने से किसान का घर धन-धान्य से भर गया. 12 साल बाद श्रीहरि लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने मना कर दिया. लक्ष्मीजी ने कहा, अगर आप घर पर मेरी उपस्थिति चाहते हैं तो कार्तिक शुक्ल तृतीया को घर की सफाई कर दीप प्रज्वलित कर ताम्र कलश में सिक्के भरकर पूजा करना. मेरी उपस्थिति सदा बनी रहेगी. तभी से धनतेरस को लक्ष्मीजी की पूजा होती है.
नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा
प्राचीन काल में राजा हेम का शासन था. बड़ी मन्नतों के बाद उनके घर पुत्र पैदा हुआ, लेकिन ज्योतिषियों ने जब बताया कि उसके विवाह के चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी. राजा ने बेटे की सुरक्षा स्वरूप अपने पुत्र को ऐसी जगह भेज दिया, जहां कोई लड़की ना पहुंच सके. लेकिन राजकुमार का दिल एक लडकी पर आ गया, उसकी शादी हो गई. चौथे दिन राजकुमार की मृत्यु हो गई. राजकुमार की पत्नी ने यमराज से क्षमा दान मांगते हुए कहा, प्रभु कोई ऐसा उपाय बताएं कि व्यक्ति अकाल मृत्यु से बच जाए. यमराज ने कहा, -कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को जो व्यक्ति दक्षिण दिशा की ओर यम के नाम दीप-दान करेगा. उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा. तभी से कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यम के नाम दिया जलाया जाता है.
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दिवाली की पौराणिक कथा
त्रेता युग में भगवान श्रीराम लंकापति रावण का संहार कर माता सीता, भाई लक्ष्मण, एवं हनुमान जी के साथ जिस दिन अयोध्या लौटे थे, वह दिन कार्तिक अमावस्या का ही दिन था. माना जाता है कि 14 वर्ष के वनवास की अवधि पूरी करने पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की अयोध्या वापसी पर अयोध्या के नागरिकों ने पूरी अयोध्या में घी का दीपक जलाकर खुशियां मनाई थी. इसके बाद से ही अयोध्या ही नहीं बल्कि देश भर में दीप जलाकर भगवान श्रीराम की वापसी की खुशियां मनाते हैं.
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
एक बार समस्त ब्रजवासी इंद्रदेव की पूजा की तैयारियां कर रहे थे. कृष्णजी ने जब इसकी वजह सुनी कि इस पूजा से प्रसन्न होकर इंद्रदेव बारिश करते हैं, कृष्णजी इंद्र के घमंड को समझ गये. उन्होंने गोकुल वासियों से कहा इंद्रदेव की जगह गोवर्धन की पूजा करें, जो हमारी गायों के लिए हरे चारे की व्यवस्था करते हैं, जिनसे हमें शुद्ध दूध प्राप्त होता है. इंद्रदेव को यह बात पता चली तो, उन्होंने क्रोध में वहां भारी वर्षा करवा दी. गोकुल वासियों को बचाने हेतु कृष्णजी ने कनिष्ठ उंगली से गोवर्धन पर्वत को उठाया. उसी के साये में गोकुल वासियों को सात दिन सुरक्षित रखा. अंत में इंद्र ने श्रीकृष्ण से छमा याचना की. तभी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है.
भाई दूज की पौराणिक कथा
स्कंद पुराण के अनुसार सूर्यदेव की दो संताने यमराज और यमुना थीं. यम पापियों को दंड देते थे. यमुना अपने भाई के इस कर्म से दुखी रहती थीं. वे गोलोकवास चली गईं. वे यम को घर बुलाकर उनकी दीर्घायु के प्रार्थना करना चाहती थी. लंबे प्रयास के बाद कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यम बहन के घर पहुंचे. भाई को देख यमुना गद्गद हो उनका गर्मजोशी से स्वागत किया, उन्हें अन्नकूट का भोजन खिलाया. यमुना का अपने प्रति प्रेम-स्नेह देखकर यम ने उनसे एक वरदान मांगने को कहा. यमुना ने कहा कार्तिक शुक्ल की द्वितीया को जो भाई बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य ग्रहण करेगा, उसके सारे पाप नष्ट होंगे, वह दीर्घायु होगा. यम तथास्तु कहकर लोप हो गए, तभी से भाई दूज की परंपरा चली आ रही है.
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