
नेशनल डेस्क: snake fair seems to be happening in bihar : वैसे तो यह देश आस्था और विश्वास के साथ भक्ति के अलग-अलग रंगों से सराबोर सभ्यताओं वाला देश है. फिर भी यहां कुछ ऐसी आस्थाएं और मान्यताएं हैं जिसे सोचकर आप सिहर जाएंगे. ढोल-नगाड़े की थाप पर सांप को लेकर लोग डांस रहे थे। दोनों हाथों में सांपों को ऐसे फैलाए थे, जैसे वो कई गमझा हो। सांपों के साथ लोग सेल्फी खींच रहे थे। समस्तीपुर के सिंघिया के अलावे दलसिंहसराय प्रखंड के मालपुर, नवादा, महनैया, कोनैला, मनियारपुर, सलखनी, ओरियामा, बम्बईया गांवों में नाग मेला का आयोजन किया गया। मालपुर के बिषहर स्थान मंदिर कैंपस में आयोजित मेले को देखने दूसरे राज्यों से भी लोग आए थे।
देश में मान्यताओं के हिसाब से नागपंचमी के दिन सांपों की पूजा अर्चना की जाती है. नागपंचमी के दिन सर्पों की पूजा का विधान है. ऐसे में सावन महीने के दोनों कृष्ण और शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस त्यौहार को पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसे में नागपंचमी के बीच इन परंपराओं में बेगूसराय मंसूरचक प्रखंड के आगापुर गांव में आज भी एक ऐसी ही परंपरा जीवंत है जो अद्भुत ही नहीं बेहद साहसिक भी है और खतरनाक भी. जहां नागपंचमी के दिन बलान नदी में जहरीले और विषैले सैकड़ों की संख्या में सांप पकड़ने की यह परंपरा बेहद ही खतरनाक और आकर्षक भी है. जिसे देखने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं.
इस अवसर पर आयोजित होने वाला यह मेला इस इलाके ही नहीं बिहार का एक खास मेला मना जाता है. इस सांपों का मेला देखने के लिए लोग विभिन्न जगहों से आते हैं. इस संबंध में बताया जाता है की मंसूरचक प्रखंड के आगापुर गांव में हर साल सांपों का मेला लगता है. यह मेला बिहार के लोगों के लिए खास मेला होता है. आगापुर गांव में आयोजित इस ‘सांपों के मेले’ में मौजूद लोग जहरीले सांपों से जरा भी नहीं डरते हैं और उनके साथ खिलौने की तरह खेलते हैं.
इस दौरान पोखर से पुजारी सैकड़ों सांपों को पानी से निकालते हैं और इन विषैले सांपों को हाथों में लेकर प्रदर्शन करते हैं. जिसे देखने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं. कई स्थानीय लोग बताते हैं कि बरसों पहले से यहां पर भगवती स्थान की स्थापना की गई थी. जिसके बाद से गांव में अमन और शांति कायम हुई. कभी भी कोई अनहोनी नहीं हुई. इसी दौरान नागपंचमी के दिन गांव के भगत के द्वारा सांप पकड़ने की परंपरा की शुरुआत भी हुई थी. धीरे-धीरे ये परम्परा आगे बढ़ती गई और बाद में ये इलाके का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बन गया.
इस परंपरा के बारे में जानिए
- समस्तीपुर के सिंघिया घाट पर नागपंचमी के दिन लगता है मेला
- क्या बच्चे, क्या बूढ़े, हर किसी के हाथों में, गले में सांप ही सांप
- सांप को कुछ लोग खिलाते हैं तो कुछ इसके साथ खेलते हैं
- सांपों को दूध पिलाकर मन्नत मांगने के बाद छोड़ दिया जाता है
- सिंघिया में 300 सालों से ज्यादा वक्त से लगातार जारी है ये मेला
- नागपंचमी के दिन सांपों को पकड़ने की प्रथा पीढ़ियों से चली आ रही
- मान्यता है कि सालों पहले ऋषि कुश का सांप बनाकर करते थे पूजा
- समय के साथ अब लोग असली सांप पकड़कर पूजा करते हैं
- दावा है कि आज तक किसी को भी सांप ने नहीं काटा
- भजन गाते लोग गले में और हाथों में सांपों को लेकर झूमते हैं
- नागपंचमी पूजा के बाद सांपों को कई नहीं पकड़ता है
- हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना कर सांपों का करतब देखते हैं
बताया जाता है कि विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद भगत गांव में स्थित पोखर में आते हैं और पोखर से सैकड़ों विषैले सांपों को निकालने का काम करते हैं. जैसे सांप न हो बल्कि कोई खिलौना हो. सांप को देखते और नाम सुनते ही जहां लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. वहीं सांपों के साथ खेलने की यह परंपरा चमत्कारिक है या फिर कुछ और यह जांच का विषय है. हालांकि इतने बरसों से लगने वाले इस मेले की सच्चाई लोग आज तक पता नहीं कर पाए. लोग इसे धार्मिक आस्था से जोड़कर देखते हैं. वही बलान नदी से सांप निकालने के बाद छोटे-छोटे बच्चे और पुरुष हाथ में लेकर प्रदर्शन करते हैं.लोगों का कहना है कि यहां भगवती माता का आशीर्वाद है इसलिए छोटे बच्चे और बुजुर्ग सांप पकड़ते हैं.
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