नेशनल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने आज बड़ा फैसला सुनाते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है। शीर्ष अदालत ने चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा, “काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है। राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।“
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड तुरंत रोकने के आदेश दिये हैं। अदालत ने निर्देश जारी कर कहा, “स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) चुनावी बांड के माध्यम से अब तक किए गए योगदान के सभी विवरण 31 मार्च तक चुनाव आयोग को दे।“ साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह 13 अप्रैल तक अपनी वेबसाइट पर जानकारी साझा करे।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवी चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले में सुनवाई कर रहे सभी जजों ने सर्वसम्मति से अपना फैसला सुनाया है। केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि दो अलग-अलग फैसले हैं- एक उनके द्वारा लिखा गया और दूसरा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना द्वारा और दोनों फैसले सर्वसम्मत हैं।
फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। सरकार से पूछना जनता का कर्तव्य है। इस फैसले पर जजों की राय है।
चुनावी बॉन्ड को रद्द करना होगा
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, चुनावी बॉन्ड योजना, अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है। कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा।
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को कानूनन लागू कर दिया था। जागरण समूह की रिपोर्ट के अनुसार, आसान भाषा में इसे अगर हम समझें तो इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है। यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड को ऐसा कोई भी दाता खरीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है, जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है। योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं।
चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है। केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो।
योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं। इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जा सकता है।
कैसे काम करते हैं चुनावी बॉन्ड?
इलेक्टोरल बॉन्ड को इस्तेमाल करना काफी आसान है। ये बॉन्ड 1,000 रुपए के मल्टीपल में पेश किए जाते हैं जैसे कि 1,000, 10,000, 100,000 और 1 करोड़ की रेंज में हो सकते हैं। ये आपको एसबीआई की कुछ शाखाओं पर आपको मिल जाते हैं। कोई भी डोनर जिनका केवायसी कंप्लेंट हो इस तरह के बॉन्ड को खरीद सकते हैं, और बाद में इन्हें किसी भी राजनीतिक पार्टी को डोनेट किया जा सकता है। इसके बाद रिसीवर इसे कैश में कन्वर्ट करवा सकता है। इसे कैश कराने के लिए पार्टी के वैरीफाइड अकाउंट का यूज किया जाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड भी सिर्फ 15 दिनों के लिए वैलिड रहते हैं।
किसे मिलता है इलेक्टोरल बॉन्ड?
देश में जितने भी पंजीकृत राजनीतिक दल हैं, उन्हें यह बॉन्ड मिलता है, लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि उस पार्टी को पिछले आम चुनाव में कम-से-कम एक फीसदी या उससे ज्यादा वोट मिले हों। ऐसी ही पंजीकृत पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा पाने का हकदार होगी। सरकार के मुताबिक, ’इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा और चुनाव में चंदे के तौर पर दिए जाने वाली रकम का हिसाब-किताब रखा जा सकेगा। इससे चुनावी फंडिंग में सुधार होगा।’ केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है।
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