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CM Yogi’s big statement regarding Gyanvapi Masjid : ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर अब चर्चा तेज गई है. एक बार भी इस मामले को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बड़ा बयान सामने आया है. एक इंटरव्यू के दौरान सीएम योगी ने इस पूरे मसले पर अपनी राय रखी. अदालत में इसका सर्वे कराने को लेकर याचिका दायर की हुई है, जिसपर 3 अगस्त को हाईकोर्ट अपना निर्णय देगी.
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त्रिशूल मस्जिद के अंदर क्या कर रहा ?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘अगर ज्ञानवापी को हम मस्जिद कहेंगे तो विवाद होगा। भगवान ने जिसको दृष्टि दी है। वो देखे न। त्रिशूल मस्जिद के अंदर क्या कर रहा है। हमने तो नहीं रखे हैं न। ज्योर्तिलिंग हैं… देव प्रतिमाएं हैं। पूरी दीवारें चिल्ला-चिल्लाकर क्या कह रही हैं।’
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योगी ने पश्चिम बंगाल सरकार को भी घेरा
इंटरव्यू के दौरान सीएम योगी ने पश्चिम बंगाल सरकार को भी घेरा। सीएम बोले कि वह पिछले 6 साल से यूपी को चला रहे हैं और इस दौरान 6 साल में कोई दंगा नहीं हुआ. यूपी में पंचायत चुनाव हुआ और वेस्ट बंगाल में हुआ. देखें तो क्या.. हुआ. लोगों को सीखना चाहिए कि चुनाव कैसे होते हैं। वहां कुछ लोग सत्ता में जबरन सब कैद करना चाहते हैं। कैसे वहां विरोधी दल के लोगों को मारा गया. आखिर दोहरा दृष्टिकोण क्यों है।
क्या है Gyanvapi Masjid विवाद ?
-1984 में देशभर के 500 से ज्यादा संत दिल्ली में जुटे. धर्म संसद की शुरुआत भी यहीं से हुई. इस धर्म संसद में कहा गया कि हिंदू पक्ष अयोध्या, काशी और मथुरा में अपने धर्मस्थलों पर दावा करना शुरू कर दे.
-अयोध्या में रामजन्मभूमि का विवाद था तो मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर विवाद है. वहीं, स्कंद पुराण में उल्लेखित 12 ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ मंदिर को सबसे अहम माना जाता है.
-अयोध्या पर हिंदू पक्ष का दावा तो आजादी से पहले ही चल रहा था. लिहाजा हिंदू संगठनों की नजरें दो मस्जिदों पर टिक गईं. एक थी मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और दूसरी थी काशी की ज्ञानवापी मस्जिद. कहा जाता है कि ‘अयोध्या तो बस झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है’ का नारा भी इसके बाद ही चला.
-फिर आया साल 1991. तब काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, संस्कृत प्रोफेसर डॉ. रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की. इनके वकील थे विजय शंकर रस्तोगी.
-याचिका में तर्क दिया गया कि काशी विश्वनाथ का जो मूल मंदिर था, उसे 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था. सन् 1669 में औरंगजेब ने इसे तोड़ दिया और इसकी जगह मस्जिद बनाई. इस मस्जिद को बनाने में मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया.
-याचिका में मंदिर की जमीन हिंदू समुदाय को वापस करने की मांग की गई थी. साथ ही ये भी कहा गया कि इस मामले में प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 लागू नहीं होता, क्योंकि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों के ऊपर बनाया गया था, जिसके हिस्से आज भी मौजूद हैं.
-ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजमुन इंतजामिया इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई. उसने दलील दी कि इस विवाद में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता, क्योंकि प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट के तहत इसकी मनाही है. इसके बाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी.
-करीब 22 साल तक ये मामला लंबित पड़ा रहा. 2019 में वकील विजय शंकर रस्तोगी इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे. उन्होंने याचिका दायर कर मांग की कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे पुरातत्व विभाग से करवाया जाए. अभी ये मामला हाईकोर्ट में चल रहा है.
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