Jagannath Rath Yatra Story : 20 जून को ओडिशा के पुरी शहर में, भगवान जगन्नाथ की प्रभावशाली रथ यात्रा आयोजित की जाएगी और यह समारोह 1 जुलाई को समाप्त होगा। हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर, जगन्नाथ रथ यात्रा धूमधाम के साथ आयोजित की जाती है। इस अवसर पर, भगवान जगन्नाथ अपने भई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ तीन रथों में सवार होकर नगर में घूमते हैं।
क्या है इसके पीछे की कहानी ?
जानकारी के मुताबिक, यह उस समय की घटना है जब भारत पर मुगलों का शासन था।सालबेग इस्लाम धर्म को मानता था, उसकी माता हिंदू और पिता मुस्लिम थे। सालबेग मुगल सेना में भर्ती हो गया। एक बार उसके माथे पर चोट लगने के कारण बड़ा घाव हो गया। कई हकीमों और वैद्यों से इलाज के बाद भी उसका जख्म ठीक नहीं हो रहा था। ऐसे में उसे मुगल सेना से भी निकाल दिया। परेशान और हताश सालबेग दुखी रहने लगा। तब उसकी माता ने उसे भगवान जगन्नाथजी की भक्ति करने की सलाह दी। सालबेग ने ऐसा ही किया
भगवान की जय-जयकार करता हुआ और भावों से भरा हुआ सालबेग तुरंत जगन्नाथजी के मंदिर की तरफ उनके दर्शनों के लिए दौड़ पड़ता है। लेकिन मुस्लिम होने के कारण उसे मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता। ऐसे में वह मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान की भक्ति करने लगता है। प्रभु का नाम जपता है और उनके भजन लिखता है। धीरे-धीरे उसके भजन अन्य भक्तों की जुबान पर भी चढ़ने लगते हैं। भगवान की भक्ति करते करते सालबेग की मृत्यु हो जाती है। लेकिन अपनी मृत्यु से पहले वह कहते हैं कि यदि मेरी भक्ति में सच्चाई है तो मेरे प्रभु मेरी मजार पर जरूर आएंगे। मृत्यु के बाद सालबेग की मजार जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर के रास्ते में बनाई गई थी।
ये कहानी भी है प्रचलित …
मान्यता है कि सालबेग नाम का एक मुस्लिम भगवान जगन्नाथ का बहुत ही बड़ा भक्त था. भगवान के प्रति उसकी श्रद्धा अपार थी. एक दिन भगवान जगन्नाथ ने अपने अनन्य भक्त को सपने में आकर दर्शन दिए, अपने प्रभु के दर्शन पाते ही सालबेग ने प्राण त्याग दिए. इस घटना के बाद जब जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा निकाली जा रही थी तभी नगर भ्रमण के दौरान रथ का पहिया अचानक मजार के सामने आकर रुक गया.
नहीं हिला एक इंच भी रथ
भक्त रथ खींचते-खींचते जोर लगाकर थक गए लेकिन रथ इंचभर भी आगे नहीं बढ़ रहा था। ऐसे में सभी परेशान हो गए और कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर क्या किया जाए। तभी किसी ने राजा को सालबेग के बारे में बताया और उसकी भक्ति तथा कथन के बारे में जानकारी दी। तब राजा ने पुरोहितजी से मंत्रणा कर सभी से भक्त सालबेग की जयकार करने के लिए कहा। सालबेग के नाम के जयकारे लगाने के बाद जब रथ को खींचने का प्रयास किया गया तो रथ चलने लगा। बस तभी से हर साल मौसी के घर जाते समय जगन्नाथजी का रथ सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रोका जाता है।
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(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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