रायपुर, तोपचंद। छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए खुशखबरी है। धमतरी जिले में उगने वाली दुबराज धान को जीआई टैग मिला है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बधाई दी है। इसके अलावा मध्यप्रदेश के सुंदरजा आम और मुरैना में बनने वाली गजक को भी GI टैग मिला है।
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों के लिए गर्व की बात है। इसपर सीएम शिवराज ने भी खुशी जताते हुए बधाई दी है। अब इन फसलों की अलग पहचान होगी और देश विदेश में इनकी खुशबु फैलेगी।
केंद्रीय कृषि मंत्री ने दी बधाई
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने GI टैग को लेकर ट्वीट कर बधाई दी और लिखा मध्यप्रदेश के रीवा का आम, मुरैना की गज़क और धमतरी छत्तीसगढ़ का नगरी दुबराज (चावल की किस्म) को मिला GI Tag.अब इनकी भी पहचान होगी देश विदेश में।
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क्या होता है GI Tag
किसी भी रीजन का जो क्षेत्रीय उत्पाद होता है उससे उस क्षेत्र की पहचान होती है। उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है जिसे जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर (Geographical Indications) कहते हैं। जिसे हिंदी में भौगोलिक संकेतक नाम से जाना जाता है।
नगरी दुबराज धान की ये है खासियत
नगरी दुबराज से निकलने वाला चावल बहुत ही सुगंधित है। यह पूर्ण रूप से देशी किस्म है और इसके दाने छोटे हैं। इसका चावल पकने के बाद खाने में बेहद नरम है । एक एकड़ में अधिकतम छह क्विंटल तक उपज मिलती है। धान की ऊंचाई कम और 125 दिन में पकने की अवधि है।
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केवल नगरी के किसान ही कर पाएंगे टैग का इस्तेमाल
इस नगरी दुबराज धान की किस्म को केवल नगरी के किसान ही उगा सकेंगे। कोई दूसरा इस टैग का इस्तेमाल नही कर सकेगा। यदि कोई करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी। यहां के किसानों को व्यापारीकरण का एक विशेषाधिकार मिलने से विपणन भी आसान हो जाएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले वर्ष नगरी के किसानों को दुबराज की खुशबू लौटाने का वादा भी पूरा हो गया है।
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इस महिला के समूह ने की थी शुरुआत
जीआइ के लिए आवेदन धमतरी के बगरूमनाला गांव के मां दुर्गा स्वसहायता समूह की अध्यक्ष प्रेमबाई कुंजाम ने वर्ष 2019 में किया था। इस समूह के फेसिलिटेटर के रूप में कृषि विवि रायपुर से डा. दीपक शर्मा, नोडल आफिसर पीपीवी और एफआरए ने रजिस्ट्रार जियोग्राफिकल इंडिकेशन के समक्ष नगरी दुबराज पर प्रजेंटेशन प्रस्तुत किया। नगरी दुबराज को छत्तीसगढ़ में बासमती भी कहा जाता है, क्योंकि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक भोज कार्यक्रमों सुगंधित चावल के रूप में दुबराज चावल का प्रयोग किया जाता है।
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