रायपुर। एक हजार करोड़ रुपये के SRC NGO घोटाला मामले में बिलासपुर हाई कोर्ट ने IAS बीएल अग्रवाल और सतीश पाण्डेय की पुनर्विचार याचिका गुरुवार को ख़ारिज कर दी।
बता दें की हाई कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने बुधवार को इस मामले में पहली एफआईआर दर्ज कर इन्वेस्टिगेशन शुरू कर दी है। अब अफसरों को गिरफ़्तारी का डर सता रहा है।
इस मामले में आरोपियों में कई वर्तमान और कई पूर्व आईएएस अधिकारी शामिल हैं। इसमें बीएल अग्रवाल का नाम भी है। इस मामले में फंसे कई अन्य अधिकारियों ने भी कोर्ट में रिव्यू पीटिशन लगाया था। बीएल अग्रवाल द्वारा दायर किये गए रिव्यू पेटीशन की सुनवाई जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस पीपी साहू की बेंच ने की है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए 3 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जिसे गुरुवार को सुनाया गया।
क्या है पूरा मामला
रायपुर के रहने वाले कुंदन सिंह ठाकुर की ओर से अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि राज्य के 6 आईएएस अफसर आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एनके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती समेत सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा ने फर्जी संस्थान स्टेट रिसोर्स सेंटर (एसआरसी) (राज्य स्रोत निशक्त जन संस्थान) के नाम पर 630 करोड़ रुपए का घोटाला किया है।
याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने हाईकोर्ट में जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव की कोर्ट में रिट लगाई। केस की गंभीरता को देखते जस्टिस श्रीवास्तव ने उसे तत्कालीन चीफ जस्टिस अजय त्रिपाठी को भेज दिया। चीफ जस्टिस और जस्टिस प्रशांत मिश्रा के डबल बेंच ने रिट को पीआईएल में बदलकर मुख्य सचिव से जांच कर रिपोर्ट मांगी। सरकार ने प्रकरण की जांच करने के लिए जीएडी सचिव डा. कमलप्रीत सिंह को जांच अधिकारी बनाया। लेकिन, याचिकाकर्ता ने सीएस के बजाए सचिव से जांच करने पर आपत्ति कर दी। इसके बाद हाईकोर्ट ने सख्त होते हुए कहा कि सीएस जांच करके रिपोर्ट सौंपे। फिर, तत्कालीन सीएस पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान अक्टूबर में कोर्ट पहुंचे। उन्होंने कोर्ट को बताया कि इस नाम की संस्था का वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं है।
स्टेट रिसोर्स सेंटर का कार्यालय माना रायपुर में बताया गया, जो समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत आता है। एसआरसी ने बैंक ऑफ इंडिया के अकाउंट और एसबीआई मोतीबाग के तीन एकाउंट से संस्थान में कार्यरत अलग-अलग लोगों के नाम पर फर्जी आधार कार्ड से खाते खुलवाकर कथित रूप से रुपए निकाले थे। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि ऐसी कोई संस्था राज्य में नहीं है। सिर्फ पेपरों में संस्था का गठन किया गया था। राज्य को संस्था के माध्यम से 1000 करोड़ का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा, जो कि 2004 से 2018 के बीच में 10 सालों से ज्यादा समय तक किया गया।