
रायपुर। छत्तीसगढ़ के जंगलों में अब विलुप्त हो चुके चीते दौड़ सकते हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की उच्च स्तरीय बेंच ने अफ्रीकी चीतों को भारत में रखने की अनुमति दे दी है।
चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की बैंच भारत से विलुप्त हो चुके चीतों को लाने के अनुमति दे दी है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने न्यायलय से नामीबिया के चीते लाकर भारत में बसाने की अनुमति मांगी थी। इस पर कोर्ट ने अनुमति दी।
पीठ ने इस संबंध में तीन सदस्यीय समिति गठित की है। इस समिति में भारत के पूर्व वन्यजीव महानिदेशक धनंजय मोहन और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के वन्य जीव उप महानिरक्षक भी शामिल है। यह समिति इस राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का मार्ग निर्देशन करेगी। पीठ ने कहा की यह समिति हर चार महीने पर अपनी रिपोर्ट न्यायलय को देगी। इसके अलावा पीठ ने कहा की अफ्रीकी चीते बसाने के बारे में उचित सर्वेक्षण के बाद ही निर्णय लिया जाएगा और वन्य जीव को छोड़ने की कार्रवाई राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के विवेक पर छोड़ दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बाद देश के जिन चार स्थानों पर चीते को बसाने की बेहतर संभावनाएं देखी गई है, उनमें छत्तीसगढ़ का गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व भी है। देश के आखरी तीन चीते भी इसी रिजर्व के रामगढ (कोरिया) के जंगलों में मारे गए थे।
छत्तीसगढ़ के अलावा यहां भी बसाए जा सकते हैं अफ़्रीकी चीते
कई सालों पहले जब चीतों को वापस भारत में बसाने का प्रस्ताव आया, तो पूरे देश में उपयुक्त स्थान की तलाश शुरू हुई। इस कमेटी में वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के मध्यभारत के प्रमुख डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद मिश्र थे। इस समिति ने देश के चार रिजर्व को चीतों के लिए उपयुक्त पाया था। राजस्थान का कुमबलगढ़ रिजर्व, छत्तीसगढ़ का गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व, सागर का नौरादेही रिजर्व और मध्यप्रदेश का पालपुर कुनो। गुरु घासीदास रिजर्व के साथ समस्या चीते के लिए पर्याप्त आहार की कमी थी। इस समय पालपुर कुनो का दावा सबसे मजबूत है।