अपनी जान पर खेलकर दूसरों की जान बचाना अदम्य साहस का काम है। ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ की दो बेटियों ने कर दिखाया है। जिन्हें अब राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाज़ा जाएगा।
प्रदेश के धमतरी जिले की भामेश्वरी निर्मलकर और सरगुजा जिले के कांति सिंह को जनवरी 2020 में दिल्ली में होने वाले कार्यक्रम में भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार-2019 से सम्मानित किया जाएगा। दोनों बेटियों ने नन्हीं सी उम्र में साहस दिखाते हुए, एक बेटी ने तैराकी ना आने पर भी दो बच्चियों की जान बचाई हैं और दूसरी ने हाथियों को चकमा देकर बहन की जान बचाई हैं। दोनों साहसी बच्चियों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार देने के लिए छत्तीसगढ़ राज्य बाल कल्याण परिषद ने अनुशंसा की थी।
तैरना नहीं आने के बाद भी दो बच्चियों की जान बचाई
धमतरी जिले के कानीडबरी गांव की भामेश्वरी निर्मलकर ने 12 साल की उम्र में गांव की दो बालिकाओं को तालाब में डूबने से बचाया। भामेश्वरी कक्षा सातवीं की छात्रा है, और यह घटना 17 अगस्त 2019 की है। भामेश्वरी बताती है,कि गांव की दो बालिकाएं सोनम और चांदनी स्कूल से छुट्टी होने के बाद गांव के तालाब में नहाने गई थीं। वे दोनों खेलते-खेलते तालाब की गहराई में आगे बढ़ती गई और डूबने लगी। भामेश्वरी ने बताया कि वह तालाब में कपड़ा धोने के लिए पहुंची थी। दोनों बच्चियों को तालाब में न देखकर, बिना इस बात की परवाह किए, कि उसे तैरना तक नहीं आता है, उसने तालाब में छलांग लगा दी। किसी तरह वह उन्हें खींचकर बाहर ले आई। भामेश्वरी के इस साहस के लिए गांव वालों से लेकर स्कूल के प्राचार्य, शिक्षकों और अन्य बच्चों ने भी उसकी जमकर तारीफ की। घटना की जानकारी मिलने पर जिले के कलेक्टर ने खुद राज्य वीरता पुरस्कार और राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए भामेश्वरी के नाम की अनुशंसा की। और अब भारतीय बाल कल्याण परिषद ने भामेश्वरी को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए चुन लिया गया है। इस बात से पूरे गांव में खुशी का माहौल है।
हाथियों को चकमा देकर बहन की जान बचाई
सरगुजा जिले के मोहनपुर गांव की रहने वाली 7 साल की बालिका कांति सिंग चौथी कक्षा की छात्रा है। कांति ने पिछले साल मात्र 6 साल की उम्र में अपनी जान की परवाह किये बगैर जंगली हाथियों के हमले से अपनी 3 साल की छोटी बहन की जान बचाई थी। सरगुजा जिला जंगली हाथियों के आतंक से पीड़ित क्षेत्र है। 17 जुलाई, 2018 को जंगली हाथियों का एक झुंड वहां पहुंच गया। हाथी, खोराराम कंवर के घर को तोड़ते हुए उसकी बाड़ी तक पहुंच कर वहां मक्के की फसल को बर्बाद करने लगे। हाथियों के डर से पूरा परिवार बाहर भागने लगा, इस दौरान वे घर पर 3 साल की मासूम बच्ची को ले जाना भूल गए। बाद में उन्हें याद आया, लेकिन किसी की हिम्मत घर वापस जाने की नहीं हो रही थी। ऐसे में कांति ने घर की तरफ दौड़ लगा दी। किसी तरह कांति जंगली हाथियों के बगल से निकलती हुई घर पहुंची और अपनी छोटी बहन को हाथियों की नजरों से बचाते उसे परिवार वालों तक पहुंचाने में सफल हो गई। कांति ने इस बात की भी परवाह नहीं कि उसके साथ कुछ अनहोनी भी हो सकती थी। पूरे गांव के लोगों ने इस साहस के लिए कांति की पीठ थपथपाई और कलेक्टर ने राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए उसके नाम की अनुशंसा की। कांति को अब यह सम्मान मिलने जा रहा है।