रायपुर। बंगला शब्द सुनते ही किसी अमीर व्यक्ति का ख्याल जहन में आता है लेकिन यहां हम बात कर रहे है आदिवासियों के बंगले की, वो भी एक रंग में रंगा हुआ – लाल बंगला ।
हर समाज या जनजाति की अपनी एक अनूठी परम्परा या रीति रिवाज होते है, जो उसे बाकियों से अलग करते है। और उन्हें एक अलग पहचान देते है।
ऐसी ही एक आदिवासी जनजाति है “भुंजिया” जिनके लाल बंगले की कहानी उन्हें बाकियों से अलग पहचान देती है। भूंजिया जनजाति में भी तीन अलग समुदाय होते हैं। चोकटीया, खोलारझिया और चिन्डा। चोकटिया भूंजिया छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में रहते हैं।
चोकटीया बाकी दो समुदायों से अलग हैं, क्योंकि केवल चोकटीया में लाल बंगले बनाने का रिवाज़ है।
क्या है लाल बंगला ?
लाल बंगला चोकटिया (भूंजीया) आदिवासियों का एक खास कमरा है, जो उनकी आस्था से जुड़ा हुआ है। इनकी जनजाति में घरों के साथ एक कमरा अलग से बनाया जाता है,जिसे लाल रंग से रंगा जाता है। जहां दूसरी जनजाति का कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता है।
क्यों है खास लाल बंगला ?
चोकटिया (भूंजीया) आदिवासी लाल बंगले यानी विशेष कमरे को अपने देवी देवता का स्थान मानते है। जो उनकी आस्था का प्रतीक माना जाता है। आदिवासी कहते है कि लाल बंगला देवी देवताओं का प्रमाण और उनकी देन है। इस लाल बंगले में सबकी आस्था और सबका विश्वास आज भी बना हुआ है।
हर परिवार में होता है एक लाल बंगला
लाल बंगले में देवी-देवताओं की पूजा भी की जाती है। यह बंगला घर के मकान से अलग बनाया जाता है। हर परिवार में एक लाल बंगला होता है। लाल बंगले को छांने के लिए घास या खदर का उपयोग किया जाता है।यह कच्ची दीवार का बना होता है। इसकी मिट्टी से छपाई करके मुरम को पानी में भिंगोकर लाल मुरम मिट्टी की पोताई की जाती है। यही मुरम मिट्टी बंगले को लाल रंग देती है।
लाल बंगले का रसोई में उपयोग
इन खास कमरों का आदिवासी रसोई के लिए उपयोग करते है, इसे गोबर से लीपा जाता है और गोबर के चूल्हे यहां बनाये जाते है। खाना पकाने के बाद थोड़ा-सा खाना और सब्ज़ी पत्ता में निकालकर चूल्हे में देवी-देवताओं के नाम से डाल दिया जाता है, उसके बाद ही घर का कोई भी सदस्य खाना खाता है। लाल बंगले से बाहर निकाले हुए खाने को वापस लाल बंगले में नहीं लिया जाता। महिलाएं जब मासिक धर्म पर होती हैं, तब लाल बंगले में प्रवेश नहीं करती हैं। लाल बंगले में चप्पल पहनकर नहीं जाते हैं। खाली पैर चलने की पुरानी प्रथा है।
दूसरे जनजाति के लिए खतरे का प्रतीक है लाल बंगला
बंगले का लाल रंग खतरे का प्रतीक होता है । ये चोकटीया भूंजिया के लिए यह आस्था का घर है लेकिन अन्य समाज के लोग इसे नहीं छू सकते हैं, ना ही खाना पकाने के बर्तन को अन्य समाज के लोगों को छूने देते हैं। अगर कोई बाहरी व्यक्ति इसे छूता है, तो घर को जला देते हैं और इसे पूरी तरह से गिरा दिया जाता है। उसके बाद नया बंगला बनाते हैं।