श्रीराम की कहानी सभी ने सुनी है, जिन्होंने रावण का वध किया, राम-रावण के इस महासंग्राम में जितना हाथ मानवों का था, उससे कहीं ज्यादा पशु, पक्षी और वानरों का था , इन्ही सभी पत्रों में एक थे जटायु।
जटायु और छत्तीसगढ़
जटायु का जिक्र रामायण में तब आता है जब रावण, सीता हरण कर अपने पुष्पक विमान से लंका की ओर जा रहा था। उस बीच जटायु ने ही उनका रास्ता रोका और सीता को छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध कर बैठा, लड़ाई के दौरान रावण ने जटायु के पंख काट दिए, जिससे वह घायल होकर जमीन पर जा गिरा। यह घटना जिस जगह घटी वह दंडकारण्य का जंगल था, जिससे इस घटना का छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से सीधा कनेक्शन देखा जाता है, जिसके साक्ष्य आज भी जगह जगह मौजूद हैं।
छत्तीसगढ़ में कहाँ है वह जगह जहाँ रहते थे पक्षीराज जटायु
हमारे राज्य का NH 43, जोकि जगदलपुर से होकर गुजरता है, इस पर एक गाँव पड़ता है फरसगांव, जंगल से घिरे इस गाँव के समीप एक शिला है, जिसे जटायु शिला कहा जाता है। जंगलों के बीच यह विशालकाय शिला की बनावट एक दूसरे से सटे या खड़ी बनावट में देखने को मिलते हैं जोकि बाकि किसी अन्य चट्टान से अलग और थोड़े रहस्यमयी नजर आते हैं। यही वह जगह है जहाँ श्री राम पहली बार जटायु से मिले थे। यह शिला ही जटायु का घर था जिसके ऊपर ही जटायु रहते थे। इस जगह भैरव बाबा का छोटा सा मंदिर भी है जहाँ हर साल मेला का आयोजन भी किया जाता है।
वह किस्सा जब श्री राम से मिले थे जटायु
पौराणिक कथाओं के हिसाब से भगवान श्रीराम की जटायु से पहली मुलाकात इस शिला में ही हुई थी। उस दौरान विशाल काय जटायु को देखकर श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण ने सोंचा की वह एक राक्षस है। उसे देखते ही लक्ष्मण ने तीर-कमान तान दी। लेकिन श्रीराम ने उन्हें पहचान लिया और मुस्कुराते हुवे लक्ष्मण को रुकने का इशारा किया। तब पक्षीराज जटायु शिला से नीचे उतरे और उन्हें अपना परिचय दिया और बताया कि वो उनके पिता राजा दशरथ के अच्छे मित्र भी हैं।
इस पर क्या कहता है आज का साइंस
इस चट्टान को लेकर शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र का भोगौलिक अध्ययन भी किया है, जिसमें इस तथ्य को प्रमाणित पाया है कि राम वनगमन मार्ग में जटायु शिला रामायण कालीन घटनाओं का जीता जागता एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है।