आज सुबह whatsapp ग्रुप में एक वीडियो आती है, जिसमें एक लड़की शराब लेने गयी हुयी है। और आसपास खड़े सब लोग उसकी वीडियो बना रहे है। और जाहिर है वीडियो को वायरल किया गया है तभी वह वीडियो हम तक पहुंची है।
वीडियो देखकर सवाल यह आता है .. कि क्या उस लड़की का शराब लेना गलत है या पुरुषों की सोच गलत है ?
दरअसल जेंडर इक़्वालिटी आज भी हमारे समाज में केवल नाम मात्र है, क्योंकि आज भी हमारा समाज हर तरह के मामलों में औरत मर्द की तुलना करना चाहता है। अगर तुलना में समाज की नजर में महिला सही है, तो उसे स्ट्रांग वुमन का हैशटैग दे दिया जाता है और अगर उनकी नजर में महिला गलत है, तो उसे एक सेंकड में उसे शेम वुमन का टैग दे देते है।
आखरी क्यों ?
महिला की आजादी, उसकी सोच, उसकी पसंद नापसंद आज भी समाज के सोच पर ही निर्भर क्यों हैं ?
अगर वह शराब ले भी रही तो ये उसकी व्यक्तिगत आजादी का हक़ है।
ये कैसी मानसिकता है जो लड़कियों को घर के अंदर तहज़ीब की पुड़िया , संस्कारों की गुड़िया जैसे शब्दों का ताज पहनाते है
लेकिन जब लड़की घर के बाहर निकल शराब दुकान पर शराब लेती नजर आ जाये तो उसे तुरंत असंस्कारी लड़की का ताज पहना देते है…क्यो ?
ऐसा किसने कहा है कि “शराब ” केवल पुरुषों के लिए बनाया गया है ? ऐसा तो कही नियम भी नहीं है।
फिर भी सभ्य समाज के सारे नियम कायदे लड़कियों के लिए ही क्यों ?
अगर लड़की शराब खरीद भी रही है तो उसमें चौकना क्यों ?
इसे सामान्य ही लिया जाना चाहिए। इसमें वॉव या हॉय हॉय जैसा कुछ भी नहीं है।
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