रायपुर। मुख्यमंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक धान खरीदी केंद्रों का दौरा कर रहे हैं। वर्षों पुराने तराजू बाट के साथ फोटो आ रही है जबकि, किसानों की लंबे समय से मांग है कि, डिजिटल तराजू में धान तोला जाए।
छोड़िए एकाएक इतने तराजू आएं भी कहां से.. मगर जब सरकार के बड़े लोग धान खरीदी केंद्र का दौरा करते हैं तब क्या किसानों से उनकी पीड़ा पूछी जा रही है कि, उन्होनें मेढ़ पर खेती की है या खेत पर।
जाहिर है वे नहीं पूछेंगे, लेकिन धान के लिए जिन अधिकारियों पर पंजियन की जिम्मेदारी थी वे किसानों के पंजीयन के बाद रकबे में से मेढ़ का रकबा अलग कर रहे हैं। यह आंशिक रूप से हो तो अलग बात है मगर यह बड़े पैमाने पर किया जा रहा है।
प्रदेश के अलग अलग हिस्सों के किसान सालों से पुराने किए गए पंजियन के आधार पर धान बेचते आ रहे हैं। बीते साल किसानों ने 80 लाख मिट्रीक टन धान बेचा था। इस बार उन्हीं किसानों से सरकार ने 85 लाख मिट्रीक टन धान खरीदा है। प्रदेश में बजट की हालत बेहतर नहीं है। मगर धान पर सरकार 2500 रूपए देने जा रही है। इसलिए इस साल ढाई लाख किसानों ने धान उगाने का फैसला लिया। तो धान के खेती का रकबा बढ़ा किसान भी बढ़ गए। सरकार ने इसे अपनी उपलब्धी के तौर पर पेश किया। लेकिन जब धान खरीदने की बारी आई तो बजट का ध्यान भी रखना है।
जब किसान धान खरीदी केंद्र में धान बेचने जा रहे हैं तब उन्हें अधिकारी नया फार्मूला बता रहे हैं कि, उनके पुराने पंजियन के आधार पर धान नहीं खरीदा जा सकता।
कारण बताया जा रहा है कि, पुराने पंजियन में मेढ़ जुड़ा हुआ है जबकि मेढ़ में धान की खेती नहीं होती। इसलिए उनसे प्रति क्विंटल 15 क्विंटल धान तो खरीदा जाएगा लेकिन उसमें से मेढ़ का रकबा कम करना होगा। इस चक्कर में किसानों के पंजियन कम किए जा रहे हैं। पटवारी हल्का और गिरदावरी के आधार पर प्रदेश में बड़ी संख्या में किसानों के धान के रकबे को कम करके धान खरीदा जा रहा है। पंजियन कम होने की वजह से किसानों थोड़ा गुस्से में हैं। लेकिन अधिकारी हैं कि, उन्हें धान खरीदी के सिस्टम को बराबर बनाए रखने की जिम्मेदारी निभानी है। यह दिगर बात है कि, खेत और धान के जिस अनुपात में धान बेचने की बात किसानों के मन में थी वह पूरी नहीं हो रही है।