कन्हार माटी- छत्तीसगढ़ में कन्हार माटी का महत्व सबसे खास है। कन्हार माटी को काली मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी में आयरन और चूने की मात्रा होती है जिसके कारण यह स्लेटी काले रंग में दिखाई देती है। मिट्टी में चिकनाहटा और नमी बहुत ज्यादा होता है। इसलिए बरसात के दिनों में या पानी पड़ने से यह मिट्टी लद्दी बन जाती है और गर्मी में सूखने के कारण कन्हार माटी में दरारें पड़ जाती है। यह मिट्टी प्रदेश के रायपुर, बिलासपुर, महासमुंद,
राजिम, धमतरी, कवर्धा, मुंगेली, कबीरधाम और कवर्धा में पाई जाती है। इस मिट्टी में धान,गेंहू,कपास, दलहन,तिलहन और सोयाबीन का फसल लिया जाता है।
मटासी माटी- छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक मात्रा में पाई जानी वाली मिट्टी मटासी माटी है। प्रदेश में लगभग 60% भूमि पर मटासी मिट्टी ही पाई जाती है। इस मिट्टी का निर्माण गोंडवाना और कुडप्पा पत्थरों से हुआ है। इसे लाल पीली मिट्टी भी कहते हैं। इसका पीला रंग फेरिक ऑक्साइड के कारण होता है और लाल रंग लोहे के ऑक्साइड के कारण इसलिए इस माटी को लाल पीली मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी में उर्वरक क्षमता अधिक नही होती है। यह मिट्टी बस्तर क्षेत्र में अधिक पाई जाती है। मुख्यतः यह बस्तर, सरगुजा, जशपुर, कोरिया,रायगढ़,कोरबा,धमतरी और महासमुंद क्षेत्र में पाई जाती है।
लाल रेतहा माटी- छत्तीसगढ़ में लाल रेतहा माटी क्षेत्र के अनुसार दूसरे नंबर पर है। लगभग 35% क्षेत्र में इस मिट्टी का विस्तार है। यह मिट्टी कांकेर,दंतेवाड़ा, बस्तर,राजनांदगांव तथा दुर्ग क्षेत्र में पाई जाती है। इस मिट्टी की सबसे खास बात इसमें मोटे अनाज उगाए जाते हैं। साथ ही इसमें कोदो,कुटकी,ज्वार,बाजरा, तिलहन जैसे फसल उगाए जाते हैं।
दोमट मिट्टी- दक्षिणी-पूर्वी बस्तर जिले में साथ प्रदेश के प्रायः सभी क्षेत्रों में यह मिट्टी पायी जाती है। इसका निर्माण नीस, डायोराइट आदि अम्लरहित चट्टानों से हुआ है। इस मिट्टी में रेत की अपेक्षा क्ले की मात्रा अधिक होती है इसलिए इसे दोमट मिट्टी कहा जाता है। दोमट मिट्टी धान के लिए बहुत अच्छा होता है। छत्तीसगढ़ में धान की उपज ज्यादा होती है।
भाटा माटी- इस मिट्टी को छत्तीसगढ़ में मुरुम कहते हैं। मोटे कण और गोल पत्थर ज्यादा होने के कारण इसे भाटा माटी भी कहते हैं। यह भूमि एल्मुनियम और लोहा के अधिकता के कारण बहुत कठोर होती है। फिर भी कहीं-कहीं इसमें मोटा अनाज और तिल का फसल लिया जाता है।
डोरसा माटी- यह माटी कन्हार और मटासी माटी का मिला जुला रूप है। यह अधिकतर नदियों के निचले ढलानों पर पाई जाती है। इसलिए इस मिट्टी में गेंहू,अलसी और तिवरा का फसल लिया जाता है।