देवेंद्र पटेल@ महात्मा गांधी जब कभी भी छत्तीसगढ़ की ओर आते एक शख्स उनसे मिलने रायगढ़ के स्टेशन जाया करता था। वो शख्स और कोई नहीं बल्कि राजा चक्रधर के दीवान डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र थे।
दौर था आज़ादी के संघर्ष का.. महात्मा गांधी अंग्रेजों के विरुद्ध जन आंदोलन के लिए देश में दौरा करते थे। ऐसे में जब कभी भी गांधी छत्तीसगढ़ की ओर आते बलदेव प्रसाद मिश्र रायगढ़ के स्टेशन पर उनसे मिलने जाते। वहां वे उनसे बात करते…गांधी भी चल रहे आन्दोलन की जानकारी लेते और उन्हें मेसेज छोड़ वहां से चले जाते।
मिश्र किशोरावस्था में गांधी के विचारों से प्रभावित थे। महात्मा गांधी के सत्य अहिंसा को मिश्र ने अपने जीवन का मुल मंत्र माना। जिसके कारण उन्होंने अपनी जीवन पद्धति एवं विचार पर गांधी को प्रमुखता दी।
महात्मा गांधी और बलदेव मिश्र का पहली मुलाकात सन 1936 को नागपुर में आयोजित प्रांतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन में हुआ था। इस दौरान बलदेव मिश्र महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, बालकृष्ण शर्मा नवीन से मिले थे। डॉ. बलदेव इस हिंदी साहित्य सम्मेलन का संचालनकर्ता थे।
मिश्र के सामाजिक क्षेत्र में रुचि को देखकर पंडित रविशंकर शुक्ल ने उनसे भेंट कर बलदेव मिश्र को मध्यप्रदेश भारत सेवक समाज का संस्थापक बनाया और नया दायित्व सौंप दिया।
बलदेव मिश्र ने बहुत अच्छा काम किया इसलिए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारत सेवक समाज की केंद्रीय कार्यकारिणी में शामिल कर अखिल भारतीय स्तर पर काम सौंप दिया।
कान्यकुब्ज कुलीन ब्राम्हण परिवार में जन्मे डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्रा के पिता नारायण प्रसाद और माता जानकी देवी थी। मिश्र ने 1914 में राजनांदगांव के स्थानीय स्टेट हाईस्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की तत्पश्चात एम. ए. और एलएल. बी नागपुर से किया। सन 1920 में बलदेव प्रसाद मिश्र पढ़ाई पूरी करने के बाद राजनांदगांव वापस लौट आये। फिर उन्होंने ठाकुर प्यारेलाल सिंह के नेतृत्व में राजनांदगांव में स्वदेशी राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की।
1922 में मिश्र राजनांदगांव से रायपुर चले गए। जहां उन्होंने पंडित रविशंकर शुक्ल के सहायक कर्मचारी के रूप में कार्य प्रारंभ किया। सन 1923 में रायगढ़ के राजा ने उन्हें बुलाया जहां वे नायाब दीवान और दीवान जैसे महत्वपूर्ण पदों पर लगभग 17 साल तक कार्य किये।
ईमानदारी,सहजता,शालीनता,चारित्रिक महानता, व्यवहारिक मनोभाव के साथ उन्होंने प्रशासनिक क्षेत्र में बहुत नाम कमाया था।
डॉ. मिश्र ने अपने कार्य क्षमता के अनुसार रायगढ़ में स्थायी महत्व को ध्यान में रखकर कई महत्वपूर्ण सेवा और सुविधा प्रारंभ कराए थे। उनकी प्रेरणा से ही रायगढ़ में गणेशोत्सव को नए और आकर्षण ढंग से मनाने का प्रचलन शुरू किया गया। रायगढ़ में ही उन्होंने ने अपने जीवन की श्रेष्ठ कृति तुलिस दर्शन नामक महाकाव्य और शोध प्रबंध का कार्य किया। जिसके लिए नागपुर विश्वविद्यालय ने उन्हें डिलीट की उपाधि प्रदान किया। उन्होंने रायगढ़ में ही रह कर मृणालिनी परिणय, समाज सेवक, मैथली परिणय, कोशल किशोर, मानव मंथन, जीवन संगीत, जीवन विज्ञान और साहित्य लहरी जैसे श्रेष्ठ रचनाओं का लेखन कार्य किया।
वर्ष 1940 में वे बीमार पड़ गए थे, जिसके कारण उन्होंने दीवान के पद से त्यागपत्र दे दिया और रायपुर, बिलासपुर व भिलाई में अध्यापन कार्य किये। मिश्र इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के उपकुलपति भी रहे हैं। बलदेव मिश्र ने नगरपालिकाओं के अध्यक्ष के पद पर खरसिया, रायपुर व राजनांदगांव में कार्य किये साथ ही वे छत्तीसगढ़ के खुज्जी विधायक के रूप में अनेक जन कल्याणकारी कार्य समपन्न किए।
पंडित बलदेव मिश्र राम चरित्र मानस के अच्छे जानकार और प्रवचनकर्ता थे। प्रवचन के माध्यम से वे समाज में राष्ट्रीय एकता और नैतिक जीवन के मूल्यों के बारे में लोगों को बताते थे। भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में भी प्रवचन करने के लिए आमंत्रित किया था।
साहित्य के क्षेत्र में भी मिश्र का योगदान अविस्मरणीय है। वे मध्यप्रदेश के हिंदी साहित्य सम्मेलन के तीन बार अध्यक्ष बने थे। सन 1946 में उनकी एक रचना साकेत संत प्रकाशित हुआ था। उनकी 80 से अधिक ग्रंथ प्रकाशित हो चुकी है। मिश्र का हिंदी साहित्य के गद्य और पद्य दोनों विधाओं में मजबूत पकड़ था।
इस तरह अपने जीवन काल में उन्होंने सामाजिक और राष्ट्रीय कार्य के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। दिनांक 4 सितंबर 1975 को छत्तीसगढ़ महतारी की कालजयी पुत्र का निधन हो गया।