इस वक्त बिलासपुर से एक बड़ी खबर है, अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर के चयन को लेकर हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि महापौर के चुनाव में आम जन को चुनावी अधिकार से वंचित किया गया है। यह याचिका भाजपा नेता अशोक चावलानी और रूपेश सोनी की ओर से अधिवक्ता आशुतोष पांडेय एवं ए. व्ही. श्रीधर (अधिवक्ता उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़) ने लगाई है .
अप्रत्यक्ष प्रणाली को इन आधारों पर चुनौती दी गई है
1. महापौर को अध्यक्ष के चुनाव में मतदान का अधिकार समाप्त कर दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप महापौर जिस वार्ड से चुन कर आया है उस वार्ड के मतदाताओं का अध्यक्ष पद पे चुनाव अधिकार सीधे तौर पे उल्लंघन हो रहा है। धारा 17ब में संसोधन के परिणाम स्वरूप है ।
2. महापौर के शपथ कार्यप्रणाली खत्म कर दी गयी जिससे जनप्रतिनिधियों की प्रामाणिकता पर संवैधानिक प्रश्नचिन्ह लगता है ।
3. नगरपालिका के कार्यकाल की अवधि में संशय पैदा करने वाला अधिनियम लागू किया है धारा 20 में संशोधन ।
4. निगम के विघटन में धारा 422 ब में संशोधन के परिणाम स्वरूप ऐसा प्रतीत महापौर निगम की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है जो कि धारा 9 के विरोधाभासी है जिसमे महापौर निगम की संरचना का महत्वपूर्ण अंग है ।
5. प्रत्यक्ष महापौर चुनाव प्रणाली में मतदाता को अधिकार था कि वो निर्वाचन याचिकाओं के माध्यम से उसे चुनौती दे सकता था, परंतु धारा 441 में संशोधन परिणाम स्वरूप अब सिर्फ पार्षद ही चुनौती दे सकता है जिसके परिणामस्वरूप मतदाताओं की जन भावनाओ का उल्लंघन हुआ है ।
6. महापौर के चुनाव में गुटबाजी तथा भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाएगा ।
7. आरक्षण की बातों में विरोधाभास हैं धारा 11 में संशोधन के परिणाम स्वरूप ।
8. महापौर का चुनाव सीमित पार्षदों के माध्यम से किये जाने के परिणाम स्वरूप निगम के विघटन की संभावनाएं बढ़ जाएंगी जिससे आम जन की जन भावनाएं आहत होंगी ।
9. महापौर के चुनाव को जो कि शहर के प्रथम नागरिक की भूमिका स्पष्ट करता है उसके चुनाव से आम जनता को वंचित करना स्वयं में कहीं न कहीं संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन है ।
10.उपरोक्त संशोधन जनहित विरुद्ध पार्षद हित प्रमाणित करता है ।