गुरू गुड़ रहीगे, चेला शक्कर लहूट गे.. यह कहावत छत्तीसगढ़ी में है। इसे यहांं इसलिए लिखा गया है कि, मूल गीत जो डॉक्टर नरेंद्र देव वर्मा ने लिखा है। वह अब कई शब्द विन्यास से मिलावटी वर्जन के रूप में सोशल मीडिया और यू ट्यूब पर तैर रहा है।
किसी भी रचना के गीत में ढाले जाने के दौरान तब्दीली की गुंजाईश बनी रहती है। लेकिन जब गीतकार और उसकी रचना महान हो तब मूल रचना सर्वोपरी हो जाती है। और उस गीत को अपने भीतर समाने वालों की यह जिम्मेदारी बन जाती है कि, वे गीत को मूल रूप में गाएं सुनाएं। ऐसा ही कुछ अरपा पैरी के धार गीत के साथ भी हुआ है।

इस गीत को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 3 नवंबर को राजगीत बनाने की घोषणा कर दी। सरकार के जनसंपर्क विभाग की ओर से मूल गीत जारी भी किया गया। लेकिन एक गीत जो यू ट्यूब से लेकर लोगों के मन में रमा हुआ है दोनों गीतों में अंतर है।
मूल गीत में डॉक्टर नरेंद्र देव वर्मा लिखते हैं
अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार
इंदिरावती हर पखारय तोरे पईयां
महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मंईया
यह गीत का मुखड़ा है इसी गीत को बाद में कई नाट्य और कला मंडलियों ने अपने अपने हिसाब से गाया, जिसकी वजह से इस मूल गीत के मुखड़े में बदलाव हो गए। अब जो जनमानस के पटल पर है उसे देखिए
अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार
इँदिरावती हा पखारय तोर पईयां
महूं पांवे परंव तोर मईया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मंईया
यानी मूल गीत का विनती करना, बदलकर पांवे परंव हो गया। विवाद जैसा नहीं है भावना एक ही है लेकिन विनती का आशय व्यापक है पांव परंव भी गाने वाले की भावना में कमी नहीं लाता। आज नरेंद्र देव वर्मा होते तो अपनी कृति पर खुद ही बताते कि उन्होंने विनती करंव किस आशय और भावना के साथ लिखा है। और बाद में उसे गाने वालों ने पांवे परंव तोर मईया क्यों कर दिया।
खैर राजगीत को राजगीत के सम्मान के साथ उसकी मूल शब्द में गाया जाना चाहिए। अलग अलग यू ट्यूब चैनलों ने इसे पोस्ट किया है इसे आप यहां सुन सकते हैं
विनती करंव : मूल गीत लक्ष्मण मस्तूरिया की आवाज में
पांवे परंव : चर्चित गीत ममता चंद्राकर की आवाज में