रायपुर। प्रदेश में धान ख़रीदी पर सियासत चरम पर हैं। राज्य सरकार और कांग्रेस केंद्र सरकार के साथ लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहा है। इसी संदर्भ में आज मंत्रालय में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों की बैठक बुलाई है।
सांसदों की गिनती में कांग्रेस के पास गिने-चुने ही सांसद है। जबकि भाजपा के सांसद की एक फ़ौज है। इस हिसाब से जिस चर्चा के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सांसदों को बुलाया है, वह विफल ही रहेगा। ख़बर तो यह है कि बहुत से बीजेपी सांसद इस बैठक में शामिल ही नहीं हो रहे।
रायपुर सांसद सुनील सोनी ने इस संदर्भ में सोमवार को जारी बयान में कहा है कि राज्य सरकार केंद्र सरकार के प्रति लोगों में भ्रम पैदा कर रही हैं। उन्होंने सीएम भूपेश बघेल को नसीहत दी है कि प्रदेश की विकास के लिए केंद्र सरकार से संतुलन बनाने की ज़रूरत है। उन्होंने मंत्रालय में आयोजित बैठक की जानकारी होने से भी इंकार किया है। बात साफ है भाजपा इस बैठक से आँख मुंदना चाहती है।
क्यों बुलाई है बैठक
धान ख़रीदी की मसले पर सीएम भूपेश बघेल सभी सांसदों का समर्थन चाह रहे हैं। जो यूँ ही आसान नहीं है। राज्य सभा और लोकसभा के कुल 3 कांग्रेस के पास हैं। जबकि भाजपा के पास लोकसभा और राज्य सभा के 13 सांसद हैं। भूपेश सरकार की लड़ाई केंद्र की भाजपा सरकार से ऐसे में यह बैठक केवल औपचारिकता के भेंट ही चढ़ना हैं।
सर्व दल और किसानों संघों के साथ भी बैठक
सांसदों की बैठक के बाद सीएम भूपेश बघेल ने सर्व दल और किसान संघों की भी बैठक बुलाई हैं। पहले सांसदों के साथ यह बैठक होगी। दूसरी बैठक सर्व दल की होगी। जिसमें सभी दल के नेता मौजूद रहेंगे। इसके तीसरी और अंतिम बैठक किसान संघों के साथ होगी।
आंदोलन को मिल रहा जन समर्थन
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को दलों का समर्थन मिले न मिले लेकिन, जनता और किसानों का समर्थन ज़रूर मिल रहा हैं। आंदोलन के आगाज होते ही हज़ारों लोगों ने इस आंदोलन का समर्थन किया हैं वही सीएम भूपेश बघेल के साथ दिल्ली जाने के लिए हामी भरी हैं। 13 नवंबर को भूपेश बघेल दिल्ली के लिए सड़क मार्ग से रवाना होंगे। 15 को दिल्ली पहुँचकर पीएम आवास कूच करेंगे।
क्यों हो रहा आंदोलन
राज्य सरकार प्रदेश में किसानों से धान खरीदने का काम मंडी और समीतियों के माध्यम से करती है। अब यही धान मीलिंग होता है यानी धान की कुटाई होती है। मिलिंग के बाद चावल को सरकार सेंट्रल पूल में खरीद लेती है।
बाद में इसी चावल को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बीपीएल परिवारों को बांटा जाता है। अब यदि सरकार धान खरीद ले तो उसे रखेगी कहां, इससे बचने के लिए केंद्र सरकार ने नियम बनाया कि, यदि राज्य की सरकारें किसानों को समर्थन मूल्य से उपर धान का बोनस राशि देगी।
ऐसे में धान ज्यादा आएगा और किसानों का फायदा होगा, सरकार को ज्यादा पैसा देना होगा। इसलिए सरकार कह रही है कि, जो प्रदेश सरकार बोनस देगी उससे केंद्र सरकार चावल नहीं खरीदेगी न ही उन्हें समर्थन मूल्य दिया जाएगा। इस तरह किसानों के धान का पूरा पैसा राज्य सरकार को अपने खजाने से देना होगा। चुंकि यह राशि बहुत बड़ी है इसलिए राज्य सरकार इसे नहीं दे सकती।
तब प्रदेश सरकार इसी नियम में केंद्र से छूट देने की मांग कर रही है कि, बोनस राज्य अपने खजाने से देगी लेकिन समर्थन मूल्य किसान का अधिकार है उसे मिलना चाहिए। इस नियम में रमन सरकार के दौरान भी मोदी सरकार ने छूट दी थी।
लेकिन, सरकार बदली तो केंद्र सरकार भी अपने पुराने फैसले से पलट गई। इसी बात को किसानों को बताने और मोदी सरकार पर प्रेशर बनाने प्रदेश कांग्रेस आंदोलन कर रही है।