रायपुर। प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने घोषणा की है कि आबकारी एक्ट के तहत जेल में बंद 320 आदिवासियों को जल्द ही रिहा किया जाएगा। बीते दिनों दंतेवाडा में जेल में बंद आदिवासियों के परिजनों ने सरकार के खिलाफ 5 अक्टूबर को मोर्चा खोला था। जिसके बाद सरकार का एक प्रतिनिधि मंडल आंदोलन कर रहे आदिवासियों से मुलाकात किया और उन्हें आश्वासन दिया कि सरकार इस ओर तेजी से काम कर रही हैं, और जल्द ही इस ओर पहल की जाएगी। इसके बाद राज्योत्सव के मौके पर कवासी लखमा के इस बयान से आदिवासियों को सरकार संतुष्ट करने की कोशिश में लगी हुई।
आंकड़े बताते हैं कि जेल में सोलह हज़ार से अधिक आदिवासी कैद हैं। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एके पटनायक की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया और चार हज़ार से अधिक जेल में बंद आदिवासियों को रिहा करने की बात कही। प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने से पहले कांग्रेस ने जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों का न सिर्फ मुद्दा उठाया, बल्कि अपने जन घोषणा पत्र में उन्हें रिहा करने का वादा किया। सरकार में आते ही तेजी से इस बात की चर्चा राजनीति का मुद्दा भी बना, सियासत भी गरमाई। लेकिन, अब ऐसा लग रहा हैं कि जल्द ही जेल में बंद आदिवासी धीरे-धीरे जेल से रिहा होना लगेंगे।
क्या-क्या हुआ अब तक
13 मई को इस कमेटी की पहली बैठक स्थानीय सर्किट हाउस में रखी गई। बैठक में कुल 1141 प्रकरणों के चार हजार सात आदिवासियों की रिहाई को लेकर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में माओवादी होने के झूठे आरोप में फंसाए गए 340 प्रकरण के 1552 आदिवासी भी जल्द ही रिहा कर दिए जाएंगे।
नई सरकार के गठन के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने महाधिवक्ता कनक तिवारी और राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा को आदिवासियों की रिहाई को लेकर ठोस योजना पर विचार करने को कहा था। महाधिवक्ता कनक तिवारी और राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायमूर्ति एके पटनायक से प्रारंभिक चर्चा की थी। चूंकि पटनायक छत्तीसगढ़ बिलासपुर उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस भी थे सो उन्होंने आदिवासियों की रिहाई के लिए बनाई गई कमेटी का अध्यक्ष बनना स्वीकार कर लिया।
बैठक में कमेटी ने बस्तर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कांकेर, सुकमा, कोंडागांव और राजनांदगांव की जेलों में बंद आदिवासियों की रिहाई को लेकर विचार-विमर्श किया है। कमेटी के सदस्य पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी, आदिम जाति विभाग के सचिव डीडी सिंह, जेल महानिदेशक गिरधारी नायक, बस्तर आईजी पी सुंदराज, बस्तर आयुक्त ने यह माना है छत्तीसगढ़ की जेलों में कही जंगल से जलाऊ लकड़ी बीनने के आरोप में आदिवासी सजा काट रहे हैं तो कही अत्यधिक मात्रा में शराब निर्माण करने की सजा भुगत रहे हैं।
कई बेकसूर आदिवासी माओवादी होने के आरोप में लंबे समय से बंद है। उनके आगे-पीछे कोई नहीं है तो वे जमानत भी नहीं ले पा रहे हैं। फिलहाल कमेटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एके पटनायक ने सोमवार को सभी सदस्यों को जिम्मेदारी सौंपी। महाधिवक्ता कनक तिवारी को रिहाई के मसले पर कानूनी नोट्स तैयार करने को कहा गया था।
एक हजार से अधिक के खिलाफ मामले दर्ज राज्य गृह विभाग के सूत्रों से मिले एक आंकड़े के मुताबिक 30 अप्रैल 2019 तक 6 हजार 743 आदिवासी जेल में बंद थे। इनके मामले विचाराधीन हैं। इनमें से 1039 के खिलाफ नक्सल मामले दर्ज हैं। इसके अलावा 16,475 आदिवासी राज्य में विभिन्न मामलों में आरोपों का सामना कर रहे हैं, जिसमें 5,239 नक्सली मामलों के तहत आरोपी हैं । 25 अप्रैल 2019 तक राज्य की सात जेलों में ऐसे 1977 अनुसूचित आदिवासी बंद हैं, जिनमें से 589 दोषी ठहराए गए हैं, लेकिन उन्होंने अपील नहीं की है। इससे उनको कानूनी मदद नहीं मिल रही है।
जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों की रिहाई के लिए इसी महीने दंतेवाड़ा में समाजसेवियों के नेतृत्व में आदिवासियों के एक समूह ने प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में आदिवासी शामिल हुए थे। इसके बाद सत्तापक्ष के विधायकों ने प्रदर्शनकारियों से चर्चा कर उन्हें मनाया और मामलों में जल्द सुनवाई के आश्वासन दिया था। इसके बाद अब 30 व 31 अक्टूबर को विशेष कमेटी की बैठक बुलाई गई थी। nl7.go”�/ݟ=